|
एसबीआइ कचहरी शाखा, रांची |
वो बैंक में मिली थी, मैं लंबी कतार में लगा था, विवेक साथ दे रहा था,
भइया कहता है तवज्जो देता है, खुद लाइन में खड़ा होकर मुझे हटने को कहता
है, मैं जुगाड़ लगाता हूं, पीछे खड़ी युवती अपनी जगह की जिम्मेदारी थमाते
हुए दूसरी लाइन की तरफ चल गयी. वापस आकर बोली- आपका लाइन जल्दी आ जाये तो
मेरा भी चलान कटा देना, मैंने हामी भरी विवेक खुश हुआ. वो चली गयी. दूसरे
लाइन में खड़ी हो गयी. मैं उसे पीछे गया. बोला - आपका लाइन जल्दी आ जाये तो
मेरा चलान कटा देना. वह मुस्कुरायी. नाम पता नहीं. हम अजनबी थे. इस बीच
विवेक ने उसका इतिहास कंगालने की कोशिश की. पता चला मारवाड़ी कॉलेज की है.
हम दोनों को नेट परीक्षा का चलान भरना था. कचहरी के पास एसबीआइ शाखा गये
थे. इस बीच दो लड़की आयी. एक के हाथ में नेट परीक्षा का चलान था. कतार में
खड़ी हो गयी. विवेक ने एक को देखा. एक ने विवेक को देखा. मैं दोनों को
देखा. कतार लंबी थी. हमारे पास पूरा दिन था. विवेक को बैंक का काफी अनुभव
था. कई बार सुबह से शाम तक कतार में ही खड़ा रह चुका था. तीन घंटे लाइन में
खड़े रहने के बाद जब विवेक की बारी आती को लंच टाइम हो जाता. लाख गुहार के
बाद भी एक मिनट के लिए भी बैंककर्मी नहीं
रुकते. पेट पहले था. किसी की मजबूरी बाद में. विवेक के साथ यह वाकया कई
बार हुआ है. झल्लाने मन ही मन गरियाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता. तो लंच
के बाद फिर से लाइन में लग जाता. विवेक की कहानी सुनने के बाद मुझे
मारवाड़ी कॉलेज की लड़की का ख्याल आया. वह खिड़की तक पहुंचने वाली थी. मैं
उसकेा पास गया. अपना चलान और पैसा उसे थमा दिया. विवेक लाइन में ही खड़ा
रखा. विवेक वाली खिड़की में बार बार लिंक फेल हो जाता. विवेक ने मुझे
बुलाया और कहा. भइया लिंक फेल होता नहीं है. जमीन दलाल जो काम देते हैं.
उसमें कमीशन मिलता है. लिंक फेल का बहाना बना कर जमीन दलाल का काम करते
हैं. विवेक की बात में दम था. बैंककर्मी जमीन दलाल का चलान काट रहा था जो
उसे लाइन के बीच में ही पकड़ा दिया जाता. वह लिंक फेल बता रहा था, लेकिन
बगल वाली खिड़की में काम चल रहा था. तभी दो सहेलियां आयी. इधर-उधर देखी और खिड़की के पास खड़ी
हो गयी. लड़की होने का नाजायज फायदा उठाना विवेक को अच्छा नहीं लगा.
लड़कियों की फितरत से विवेक वाकिफ था. प्यार से बातें कर अपना काम निकालना
लड़कियों का पहला हथियार है और लड़के (बेवकूफ) प्यार भरी मीठी - मीठी बातों
में आ जाते हैं. फिर बात समझ में आते ही ठगा-लुटा
पाते हैं. तभी विवेक ने कह दिया. बहनजी कपया लाइन से आये. हम भी लाइन में
ही हैं. विवेक यूं ही कह दिया था, लेकिन दोनों लड़कियों ने विवेक की बात
सुन ली. खीज भरी आवाज में बोली हम सिर्फ पूछ रहे हैं और लाइन के पीछे खड़ी
हो गयी. विवेक का बोलना गुनाह हो गया. खैरियत ये रही कि अब तक ऐसा कोई
कानून नहीं बना. वरना दोनों लड़कियां पता नहीं क्या - क्या उपनाम लगा कर
विवेक को जेल की हवा खिलाती. वैसे भी 15 मिनट तक लड़की को घूरना गैरजमानतीय
अपराध है. कानून बनाने वाले लड़कियों के हित में तो कानून बना रहे हैं,
लेकिन लड़कों का ख्याल नहीं रख रहे. अब तक के अनुभव में यही देखा है कि
लड़कियां ब्रेकअप करती हैं, दूसरे लड़के के हो जाती है वहीं लड़के दाढ़ी
बढ़ाकर दारू पीकर छह महीने साल भर या तमाम उम्र गम खाये बैठे रहते हैं. इस
खेल में ज्यादा माहिर लड़कियां होती हैं. दोनों लड़कियां आपस में बात की.
दूसरी लाइन की तरफ नजर दौड़ायी फिर चली गयी. ... जारी...